कल देर तक,
चुपचाप सिमट कर बैठा रहा,
मैं आँगन में अपने;
हलकी सी मदहोशी थी,
और मीठी सी एक बेचैनी,
चाहत और मुस्कराहट की लुक्काछिपी,
और लफ़्ज़ो की खिचातानी।
शायद,
तेरे एहसास के ठंडे छीटें पड़े थे,
और रेशम के कुछ शब्द गिरे थें,
रूह पर मेरे।
सर्द धुंध का सफ़ेद परदा,
और उस पार तुम;
कभी अजनबी और कभी पुरानी पहचान वाली,
दिख रही थी...
Saturday, May 09, 2009
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हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे
हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो हम लड़ेंगे युद्...
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