Sunday, March 01, 2009

एहसास के टुकड़े

वक्त ख़ुद बेवक्त
हमारे लिए,
उपहार में, सूखी टहनी छोड़ जाता है;
एक झटके में जाने,
कितने रस्ते, कितने रिश्ते मोड़ जाता है...


लोग घाव से बहते अपने लहू से,
दर्द को कभी सींचते है,
या हरे चादर में छिपाकर,
हंसके ख़ुद को नोचते है...

इंसान को छोटी चीज़ें खीचने का कीडा होता है,
टहनियों को वृक्ष, और वृक्ष को अंतरिक्ष बनाता है,
हर बार अपने हाथों में किल ठोकता है;
ख़ुद को खुश रखने के लिए,
रह रह कर अपना दर्द सुनाता है।


संघर्ष की पोटली, herosim का एहसास,
वक्त की टहनियां,
झोले भर बकवास..

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...