Saturday, January 10, 2009

बुझने दो मेरी ख्वाईशें

चिता के आहट से पहले
राख कैसे छा गया ?
वक्त का दीमक ये कब
परिंदे का पर खा गया ?
जा को जुगनू ने ही चुना था,
अब छिप गया क्यूँ खाल में ?

बुझने दो मेरी ख्वाईशें
रखा है क्या इन सवालों में...

भीड़ की हर शाखों पर,
फन्दों सी लटकी है क्यूँ टाई ?
सुलझे फीते वाले जूते,
कब भेंट दे गएँ तन्हाई ?
पंख वाले बुलबुलों ये कैसे ?
दब गएँ दीवारों में ?

बुझने दो मेरी ख्वाईशें
रखा है क्या इन सवालों में...

तनहा रोकर बारिशों में,
हौले हौले जल रहा,
तारों का सपना कभी था,
आज मैं ही ढल रहा...




2 comments:

falcon said...

GR8 WORK DUDE..
raj is back!
bACK AGAIN..
hE'LL KICK some ass..
Blog again!!!

वर्तिका said...

just too gud.... meri favorite....

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...