Saturday, June 09, 2007

अधूरा तेरे गलियों से ..

बड़ी फुर्सत से जीता था,
तेरी गलियों जब गुजरा..
मेरा दिल तेरे पनघट पर
खड़ा बन कांच का टुकडा..

मोहब्बत हुई मुझे जब से ,
ना जी पाते, ना मर सकते॥
तेरी खुशबू कि चाहत मे

मेरी साँसे...
भटकतें है नही थकतें ..

सज़ा कैसी मोहब्बत में,

मैं भंवरा तेरे आंगन का,बेचैन तेरी kashish में

तू सुनकर झूमती पर ,

आवारे कोयलों की धुन..

मैं डूबा चांद की चाहत में,
वो छिपती बादलों मे है,
कभी आँचल में चांदनी ले कर ,
मुझे पागल बना देना ....

बड़ी फुर्सत से जीता था ..तेरी गलियों से जब गुजरा..

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...