Monday, April 09, 2007
मेरे बचे शब्दों के कूछ अंश
अकेले आईने में अपनी सूरत को चिधाना,
बैठे बंद कमरे में कभी कुछ बुदबुदाना,
कभी आकाश को सोच मुट्ठी में,
ख़ुशी से झूमना बन पागल;
बेचैन होकर छट पटना बिस्त्रो में कभी,
और कभी मचलना ,बन प्यार का बादल।
हज़ारों स्वप्न पन्नों में सजाकर,
अक्सर संवेदन हीन फाड़ देते हैं,
अपनी कल्पना के शहर को,
चुपके से ,अपनी ही बेबसी में मार देते हैं॥
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हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे
हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो हम लड़ेंगे युद्...
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